रचनात्मक सांगीतिक कार्य - मराठी व हिंदी सिनेमा संगीत

मास्टरजी शीघ्र संगीतकार, गीतकार व गायक थे | संगीत देते समय उन्हें कभी हारमोनियम या अन्य किसी वाद्य अथवा पद्य रचना की भी आवश्यकता महसूस नहीं होती थी | किस प्रसंग हेतु गीत की जरुरत है, इतना समझा देने भर से वे वहीं पर स्वरों को पिरोते हुए गुनगुनाना शुरू कर देते थे | बतौर संगीतकार इस तरह से अनगिनत धुनों को गाकर वे उस व्यक्ति के समक्ष कई सारे विकल्पों को खोल कर रख देते थे |

कई बार मास्टरजी अपनी शास्त्रीय संगीत की महफ़िलों में श्रोताओं की फरमाइश पर अपने द्व्रारा संगीतबद्ध किये या सिनेमा में गाये लोकप्रिय गीतों को विस्तारपूर्वक प्रस्तुत करते थे | हर समय वे इन गीतों को भिन्न-भिन्न सांगीतिक हरकत के साथ गाते थे, जिससे एक ही सिनेमाई गीत हर बार अलग व रोचक ढंग से उभरकर सामने आता था |

मास्टरजी ने ही सर्वप्रथम शास्त्रीय संगीत की महफ़िलों में श्रोताओं के आग्रह पर अपने सिनेमाई गीतों को गाने का रिवाज शुरू किया था | यद्यपि वे इन गीतों को हर बार कुछ मौलिकता प्रदान करते हुए उन्हें नित नए ढंग से प्रस्तुत करते थे | उन्होंने कभी किसी संगीत विधा को निषिद्ध नहीं समझा | अलग-अलग जगहों पर जहाँ भी वे जाते, उस मिट्टी से जुड़े संगीत की बानगी को सहजता आत्मसात कर लेते थे |

मास्टरजी की रची धुनें भले ही सुनने में आसान लगे, उन्हें सहज-सुलभ और उतने ही भावपूर्ण तरीके से गाना आसान नहीं है | बड़ी स्वाभाविकता से ये धुनें उनकी जुबान पर आ जाती थी, लेकिन जब उन्हें अंतिम रूप देने की बारी आती, वे उन्हें परिपूर्ण बनाने की दिशा में कड़े प्रयास उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे |

१९३४ में मास्टरजी ने ‘धर्मात्मा’ सिनेमा के संगीत-निर्देशन हेतु प्रभात सिनेमा संस्था में अपने कदम रखें | ‘संगीत कान्होपात्रा’ नाटक के भक्ति गीतों को अलग-अलग धुनों में पिरोकर उन्होंने प्रथमतः नाट्य संगीत में स्वतंत्र स्वर रचना का नवाचार स्थापित किया था | तब तक नाट्य संगीत के अंतर्गत नाट्य पदों को परिपाटी से चली आ रही बंदिशों या वारकरी शैली के अभंगों की तर्ज पर प्रस्तुत किया जाता था | यही वजह है कि ‘कान्होपात्रा’ का संगीत स्वतंत्र स्वर-रचना के चलते अलग तथा विशेष माना गया | इसी तरह उन्होंने ‘धर्मात्मा’ सिनेमा के भक्ति संगीत को भी शास्त्रीय रागदारी में ढाला | अब तक सिनेमा के भक्ति गीत पारम्परिक वारकरी संगीत की शैली में, प्रचलित अभंगों, प्रार्थनाओं व आरतियों की तर्ज पर गाये जाते थे | इतना ही नहीं मास्टरजी ने ‘धर्मात्मा’ के कुछ गीतों में बालगंधर्व के गले में बैठे उनके खास ‘भीमपलास राग’ को भी अद्वितीय कुशलता से काम में लाया था | इस तरह से उन्होंने भक्ति संगीत को शास्त्रीय संगीत का जामा पहनाकर स्वतंत्र स्वर- रचनाओं को रचा और इस संगीत को एक बिल्कुल अलग शास्त्रीय रंग में प्रस्तुत किया, जो कि एक नये अध्याय की शुरुआत थी |

मास्टरजी ने निम्नांकित सिनेमा में बतौर संगीतकार / अभिनेता अपना योगदान दिया :-

प्रभात फिल्म कंपनी

  • धर्मात्मा (१९३५)(हिंदी संस्करण: धर्मात्मा)
  • गोपालकृष्ण (१९३८) (हिंदी संस्करण: गोपालकृष्ण)
  • माणूस (१९३९)(हिंदी संस्करण: आदमी)
  • शेजारी (१९४१)(हिंदी संस्करण: पडोसी)
    ‘शेजारी’ सिनेमा की शुरुआत मास्टरजी के गाये 'श्रीरामाचे अयोध्या नगर’इस गायन ( प्लेबैक ) से होती हैं |

प्रभात के हिंदी सिनेमा हेतु बतौर संगीतकार मास्टरजी का अवदान

  • अमरज्योती(१९३६)
  • वहाँ(१९३७)
  • लाखारानी (१९४५)

गन्धर्व नाट्य मण्डली के ‘संगीत अमृतसिध्दी’ इस नाटक पर आधारित १९३७ में बनी ‘साध्वी मीराबाई’ नामक हिंदी फिल्म में मास्टरजी ने बतौर संगीत निर्देशक और अभिनेता अपना अवदान दिया |

राजकमल चित्रपट

  • भक्तीचा मळा (१९४४)(हिंदी संस्करण: माली)

मास्टरजी ने ‘भक्तीचा मळा’ सिनेमा के गीत और अभंगों को अपनी आवाज दी, साथ ही उन्हें संगीतबद्ध भी किया था | इस फिल्म में उन्होंने संत शिरोमणि सावता माली का मुख्य किरदार निभाया था | मास्टरजी ने बिना किसी डमी के खेतों के काम, जैसे जुताई, रहट, बैलगाड़ी चलाना आदि दृश्यों को खुद मेहनत करते हुए अंजाम दिया और उनका फिल्मांकन करवाया था | धार्मिक प्रवृत्ति और अपने आधात्मिक रुझान की वजह से वे इस भूमिका के लिए बहुत ही अनुकूल साबित हुए थे | उनका अभिनय इतना सार्थक हो उठा था, मानों वे सावता माली का जिया हुआ जीवन ही जी रहे थे | ‘भक्तीचा मळा’ राजकमल कम्पनी की पहली मराठी फिल्म थी | सिनेमा के प्रदर्शन के तुरंत बाद ही इस फिल्म ने ऐसी ख्याति पाई कि उसे देखने दर्शकों की भीड़ उमड़ पड़ी | इसकी लोकप्रियता इतनी थी कि गांव-कस्बों के लोग अपने कुटुंब-कबीलों को बैलगाड़ियों में बिठाकर फिल्म देखने हेतु पुणे-मुम्बई चले आते थे | आगे राजकमल ने इसी फिल्म को ‘माली’ नाम से हिंदी में फिल्माया था, जिसके चलते यह फिल्म समूचे भारत भर में देखी गई |

विकास पिक्चर्स

  • मेरी अमानत (१९४७)
  • विकास पिक्चर्स की ‘मेरी अमानत’ में मास्टरजी शिक्षक की भूमिका में सामने आये | उन्होंने इसके गीत भी गाये थे | श्रीधर पारसेकर ने इस फिल्म को संगीत दिया था | उस समय इस फिल्म की ध्वनि मुद्रिकाओं ने अच्छीखासी प्रसिद्धि पाई थी |

मास्टरजी के संगीत निर्देशन में बनी फ़िल्में :

अत्रे पिक्चर्स

  • वसंतसेना (१९४२)
  • भले ही इस सिनेमा को व्यावसायिक सफलता नहीं मिली, लेकिन मास्टरजी के द्वारा संगीतबद्ध किये गए इसके गीत जैसे कि‘आला उदयाला नभी चंद्रमा आला’ ने बड़ी ख्याति बटोरी थी | संगीत प्रेमी सुधिजन प्रायः मास्टरजी की महफ़िलों में इन गीतों की फरमाइश करते और मास्टरजी अपने अनूठे ढंग से उन्हें प्रस्तुत करते थे |

आर्यन फिल्म कंपनी

  • ताई तेलीण (१९५३)
  • मास्टरजी के संगीत निर्देशन में बनी यह फिल्म उसके गीतों के साथ व्यावसायिक दृष्टि से सफल रही |

माणिक स्टुडिओज

  • कीचकवध (१९५९) (हिंदी संस्करण कीचकवध)

शत्रुजित फिल्म्स

  • विठू माझा लेकुरवाळा (१९६२)

राजा नेने प्रॉडक्शन्स, चंद्रमा पिक्चर्स

  • संत रामदास (१९४९)

    राजा नेने जी के निर्देशन में बनी इस फिल्म को मास्टरजी ने भक्ति रस प्रधान संगीत दिया था |

संवाद व संपर्क

अनुसरण किजीए