रचनात्मक सांगीतिक कार्य - भक्ति संगीत

रचनाशील मास्टरजी ने गंधर्व नाटक मण्डली के ‘संगीत कान्होपात्रा’ नाटक के भक्ति गीतों को अलग-अलग धुनें दी | भक्ति रस से पूर्ण पदों के लिए किया गया यह मौलिक कार्य नाटक के मंचन में किया गया प्रथम प्रयोग था | इससे पहले नाट्य भक्ति-गीतों की धुनें पूर्व रचनाकारों की बंदिशों के आधार पर, प्रचलित भजनों व अभंगों की तर्ज पर रची जाती थी |

मास्टरजी ने प्रभात फिल्म कम्पनी के ‘धर्मात्मा’ फिल्म के भक्ति संगीत को स्वतंत्र स्वर रचना के आधार पर शास्त्रीय संगीत की रागदारी में निबद्ध किया | तब तक फिल्मों में भक्ति गीत पारम्परिक वारकरी संगीत की धुनों पर, प्रचलित प्रार्थनाओं या आरतियों की तर्ज पर गाये जाते थे | मास्टरजी ने भक्ति संगीत के क्षेत्र में एक नया अध्याय जोड़ा, जिसका अनुसरण आगे चलकर कई भक्ति गीतों के संगीतकारों ने किया |

वर्ष १९७० के आसपास एचएमवी ने मास्टरजी के भक्ति-संगीत संयोजन की एक ध्वनि मुद्रिका प्रकाशित की | उसमें शामिल उनके गाये व स्वरबद्ध किये गए ‘परब्रह्म निष्काम तो हा’,‘तुझी ये निडळी’, ‘देव म्हणे नाम्या पाहे, ‘कृष्ण माझी माता’, ‘भाव तेथे देव, ‘ऐक ऐक सखये बाई’ जैसे अभंग व ग्वालन-गीत बड़े यादगार साबित हुए |

एचएमवी ने वर्ष १९७० में ‘संगीत कलानिधि मास्टर कृष्णराव मराठी भक्ति गीत’ नाम से एक और ध्वनि मुद्रिका का प्रकाशन किया था | इन गीतों की गायकी और मास्टरजी की समग्र सांगीतिक उपलब्धि को लेकर कविवर्य ग. दि. माडगूळकर ने अपनी यथोचित प्रतिक्रिया से मास्टरजी की संगीत कला को गौरवान्वित किया है |

डॉ. अशोक रानडे मास्टरजी को ‘सुगम संगीत प्रवर्तक’ की उपाधि से सम्मानित करते हैं | मास्टरजी के संगीत में भाव संगीत तथा सुगम संगीत इन दोनों विधाओं का समन्वय होने से उनके संगीत में ये दोनों शैलियाँ कहीं-न-कहीं अवश्य झाँकती दिखाई देती है | ‘नाट्य निकेतन’ की खातिर ‘संगीत कुलवधू’ नाटक के ‘मनरमणा मधुसुदना’ पद का भक्ति संगीत हो या प्रभात के ‘गोपालकृष्ण’ सिनेमा के संगीतबद्ध किये गए गीत, सभी मास्टरजी की भक्ति संगीत संयोजन की बेहतरीन बानगी दर्शाते हैं | इसके अलावा प्रभात के ‘माणूस’ सिनेमा का ‘मन पापी भुला’ यह भजन या प्रभात के ही ‘शेजारी’ सिनेमा का ‘श्रीरामाचे अयोध्या नगर’ भजन (पडो़सी सिनेमा का 'अवधपुरी सब प्रेम ही छावा' भजन) इन भजनों में यह मिलाफ अपने चरम पर दिखाई देता है | ये सभी गीत बड़े ही कर्णमधुर और सहज-सुबोध प्रतीत होते हैं | यद्यपि मास्टर जी के संगीत के बारे में लिखते हुए कई लोगों ने दर्ज किया है कि प्रत्यक्षतः इन गीतों को इतनी सहजता व सुंदरता से प्रस्तुत करना बिलकुल आसान नहीं है |

मास्टरजी ने जिस तरह से ‘वन्दे मातरम्’ गीत को राष्ट्रगान बनाने हेतु भारतीय संविधान समिति के सदस्यों के समक्ष हर तरह के प्रयास किये थे, उन्हें देखकर कुछ वर्षों के उपरान्त डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर ने मास्टरजी से ‘बुद्ध वंदना’ को भी सांगीतिक संरचना में निबद्ध करने का विशेष अनुरोध किया | मास्टर जी ने इस अनुरोध का नम्रता पूर्वक स्वीकार किया और इसे भगवन बुद्ध की सेवा जानकर बिना किसी मानदेय के बुद्ध वंदना को संगीतबद्ध किया इसकी खातिर उन्होंने मुंबई के सिद्धार्थ कालेज में जाकर वहां पर पाली भाषा का अध्ययन किया और सर्वप्रथम बुद्ध वंदना के अर्थ को गहराई से जाना-समझा | डॉ. बाबासाहब अम्बेडकरजी ने मास्टरजी के इस कार्य की महत्ती जानकर उन्हें सादर सम्मानित किया और १९५६ में इस बुद्ध वंदना की ध्वनि मुद्रिका को प्रकाशित करवाया | ये ध्वनिमुद्रिका सर्वप्रथम १४ अक्तूबर १९५६ सम्राट अशोक विजयादशमी के मंगल दिन पर नागपूर में संपन्न हुआ धर्मांतरण समारोह में बजाया गया | उस समय बौद्ध धर्मीय व्याख्यानों-भाषणों तथा विवाह समारोहों में बुद्ध वंदना की इस ध्वनिमुद्रिका को बाकायदा बजाया जाता था | भक्ति संगीत में निबद्ध की गई बुद्ध वंदना के कार्य के लिए डॉ. बाबासाहब ने उनका गौरव किया था ही, तिब्बत के सर्वोच्च धर्मगुरु दलाई लामा तथा चीन व जर्मनी के बौद्ध भिक्षुओं ने भी इसका सादर संज्ञान लिया |

संवाद व संपर्क

अनुसरण किजीए