महत्वपूर्ण घटनाएं, पुरस्कार और सम्मान

  • वर्ष १८९८
    • २० जनवरी के दिन महाराष्ट्र के श्री क्षेत्र देवाची आलंदी में शाम छह बजे गोधूलि मुहूर्त पर जन्म |
  • वर्ष १९११
    • पुणे की नाट्यकलाप्रवर्तक संगीत नाटक मण्डली में ‘संत सखुबाई’ इस ख्यातिलब्ध नाटक में बाल गायक अभिनेता के रूप में विठ्ठल की भूमिका अदा की | इस नाटक मण्डली को सवाई गंधर्व के निर्देशन में संगीत मिला था | इस नाट्य संस्था के मंचित नाटक ‘राजा हरिश्चंद्र’ में संत रोहिदास और ‘संगीत सौभद्र’ में नारद की बाल गायक-अभिनेता की उनकी भूमिकाओं को भी बड़ी ख्याति मिली | लगभग चार वर्षों तक वे नाटक से जुड़े रहे | तत्पश्चात विधिवत शास्त्रीय गायन की शिक्षा हेतु नाटक मण्डली से विदा ली |
    • गायनाचार्य पंडित भास्करबुवा बखले के पास विधिवत शास्त्रीय संगीत की शिक्षा का आरम्भ | उम्र के तेरहवें वर्ष में धुले के कमिन्स क्लब में प्रथम निजी सार्वजनिक प्रस्तुति में रंग जमाया | इस उपलब्धि पर पुणे के किर्लोस्कर थिएटर में साहित्य सम्राट एन. सी. केलकर के हाथों सुवर्णपदक पाकर गौरवान्वित और मास्टर कृष्णा की उपाधि से अलंकृत हुए |
  • वर्ष १९११
    • गायनाचार्य पंडित भास्करबुवा बखले के पास विधिवत शास्त्रीय संगीत की शिक्षा का आरम्भ |
    • उम्र के तेरहवें वर्ष में धुले के कमिन्स क्लब में प्रथम निजी सार्वजनिक प्रस्तुति में रंग जमाया | इस उपलब्धि पर पुणे के किर्लोस्कर थिएटर में साहित्य सम्राट एन. सी. केलकर के हाथों सुवर्णपदक पाकर गौरवान्वित और मास्टर कृष्णा की उपाधि से अलंकृत हुए |
  • वर्ष १९१५
    • गंधर्व नाटक मण्डली में प्रवेश |
  • वर्ष १९२२
    • गुरुवर्य बखले बुवा का स्वर्गवास | बुवा की गायन परम्परा को आगे बढ़ाया | बुवा को हर वर्ष जालंधर के हरिवल्लभ संगीत समारोह, मुंबई की ब्राह्मण सभा आदि कई जगहों से गायन हेतु आमंत्रित किया जाता था | इस संगीत यात्रा को आगे ले जाने के साथ-साथ मास्टरजी ने गंधर्व नाटक मण्डली के संगीत विभाग की बागडोर को भी सँभाला |
  • वर्ष १९२५
    • सिंध प्रान्त के शिकारपुर में होली पर्व पर गायन प्रस्तुति दी | इस मौके पर धनाढ्य व्यवसायी व गान-रसिक रह चुके सेठ लक्ष्मीचंद नारंग उर्फ लालाजी से प्रथम भेंट | वे मास्टरजी को कराची ले गए और अपने निवास स्थान पर उनकी महफ़िल का आयोजन करते हुए उसकी रिकार्डिंग भी की | मास्टरजी ने अपने सभी गुरुबंधु और गुरु भगिनियों को लालाजी से मिलवाया और कराची में उनकी महफ़िलों का आयोजन करवाया |
  • वर्ष १९३०
    • नासिक में श्रीमद शंकराचार्य डॉ. कुर्तकोटी के हाथों संगीत कलानिधि उपाधि से विभूषित |
  • वर्ष १९३३
    • महाराष्ट्र के सोलापुर में त्रिदिवसीय ( १९,२०,२१ अगस्त ) ‘महाराष्ट्र प्रांतीय संगीत परिषद’ में सहभागिता व उस अवसर पर गठित संगीतज्ञ मंडल में नियुक्ति |
  • वर्ष १९३४
    • गंधर्व नाटक मण्डली बंद हो गई | ‘धर्मात्मा’ सिनेमा के लिए बतौर संगीत निर्देशक पुणे की प्रभात फिल्म कम्पनी में प्रवेश |
  • वर्ष १९३६
    • बर्लिन ओलम्पिक में कृष्णराव द्वारा गाये गए ‘वन्दे मातरम्’ गीत की ध्वनि मुद्रिका को स्वतंत्रता पूर्व भारत के राष्ट्रगान के रूप में बजाया गया |
  • वर्ष १९३७
    • २६ अक्टूबर के दिन पुणे के तिलक स्मारक मंदिर में ‘वन्दे मातरम्’ दिवस मनाया गया | इस अवसर पर स्वतंत्रता वीर सावरकर, सेनापती बापट, एल. बी. भोपटकर, जी. वि. केतकर की मौजूदगी में विराट जनसमुदाय के समक्ष राग झिंझोटी में स्वरबद्ध किये वन्दे मातरम् गीत का गायन हुआ | गीत को कर्णमधुर और सरल-सुबोध धुन में निबद्ध करने की उपलब्धि पर श्रीमान भोपटकर के हाथों सम्मानित हुए और स्वतंत्रता वीर सावरकर से प्रशंसा मिली |
  • वर्ष १९४१
    • जुलै महीने में मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज के सभागार में गान प्रस्तुति की समाप्ति के पश्चात् श्रीमती सरोजिनी नायडू के हाथों सत्कार और ‘गायकों के नेता’ उपाधि से सम्मानित |
  • वर्ष १९४२
    • ८ अगस्त के दिन मुंबई के गोवलिया टैंक पर आयोजित कांग्रेस के ऐतिहासिक ‘चले जाओ’ अधिवेशन में वन्दे मातरम् गीत के गायन हेतु मास्टरजी का ही चयन हुआ | तब उन्होंने स्वकृत धुन में रचित ‘वन्दे मातरम्’ को उसके सभी अंतरों समेत गाकर प्रस्तुत किया |
    • नाट्यनिकेतन संस्थाने निर्माण किया हुआ 'संगीत कुलवधू' नाटक प्रदर्शित हुआ | क्षण आला भाग्याचा, मनरमणा मधुसूदना एवं बोला अमृत बोला इन तीनों नाट्यपदोंकी नव-स्पर्श प्राप्त धुनें इक दिन में तैय्यार की और संपूर्ण नाटक को इक हप्ते के अंदर संगीत दिया | शास्त्रीय रागदारी पर आधारित होने के बावजूद बदलते दौर को पहचान कर समयानुरूप भावगीत के तर्ज पर दी हुई धुनें इस नाटक की सबसे बड़ी विशेषता थी |
  • वर्ष १९४४
    • ‘भक्तीचा मळा ( हिंदी संस्करण : माली )' फिल्म में बिना किसी डमी वास्तववादी अभिनय कर के संत शिरोमणि सावता माली का मुख्य किरदार निभाया | इस सिनेमा के गीत और अभंगों को उन्होंने अपनी आवाज दी, साथ ही उन्हें संगीतबद्ध भी किया |
  • वर्ष १९४७
    • अपनी संगीत प्रस्तुतियों का समापन मास्टरजी अक्सर अपने द्वारा संगीतबद्ध किये ‘वन्दे मातरम्’ गीत को किसी राष्ट्रगान की तरह ही गाकर करते थे | यद्यपि ब्रिटिशों के राज में इस तरह से सार्वजनिक रूप से वन्दे मातरम् गाने पर प्रतिबंध लगा हुआ था | इसके बावजूद एक बार आकाशवाणी द्वारा आयोजित अपनी किसी गान महफ़िल में मास्टरजी ने नाट्य-पद की गायकी के अंत में सहसा वन्दे मातरम् के बोल छेड़ दिए | तब आकाशवाणी के डायरेक्टर श्रीमान बुखारी ने तुरंत ध्वनिक्षेपक बंद करते हुए प्रसारण रोक दिया | मास्टरजी ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए आकाशवाणी का पूर्णतः बहिष्कार कर दिया | फिर आगे जब वर्ष १९४७ में आजादी दृष्टिपथ में थी, आकाशवाणी ने सरदार वल्लभभाई पटेल की मध्यस्थता से गुड़ी पड़वा के शुभ मुहूर्त पर मास्टरजी को पूरे सम्मान के साथ वन्दे मातरम् गीत गाने के लिए आमंत्रित किया | मास्टरजी ने भी इस गीत को गाकर अपना बहिष्कार वापस ले लिया और आकाशवाणी में अपने सांगीतिक पेशे को दुबारा शुरू किया |
  • वर्ष १९४७ ते १९५०
    • ‘वन्दे मातरम्’ को आजाद भारत का राष्ट्रगीत बनाने के लक्ष्य हेतु संसद में इस गीत की प्रस्तुतियां दी | अंततः वर्ष १९५० में तत्कालीन सरकार ने इस गीत को राष्ट्रीय गीत घोषित करते हुए राष्ट्रगीत की बराबरी का सम्मान दिया |
  • वर्ष १९५३
    • भारत सरकार द्वारा गठित कलाकारों के सांस्कृतिक शिष्टमंडल में चयन और चीन गमन | पेकिंग (आज का बीजिंग ) में इन कलाकारों द्वारा आयोजित हर सांस्कृतिक प्रस्तुति में कार्यक्रम का आरम्भ मास्टरजी के द्वारा संगीतबद्ध किये वन्दे मातरम् गीत से होता था |
  • वर्ष १९५६
    • डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर के विशेष अनुरोध पर भारत में प्रथमतः बुद्धवंदना को संगीतबद्ध किया और उस बुद्धवंदना का कोरस की साथ लेकर खुद गायन किया | डॉ. बाबासाहब अम्बेडकरजीने बुद्धवंदना के ध्वनिमुद्रण की व्यवस्था की और उस ध्वनि मुद्रिका को १४ अक्टूबर १९५६ सम्राट अशोक विजयादशमी के शुभदिन नागपूर में संपन्न हुए धर्मांतरण समारोह में बजाया गया |
  • वर्ष १९५८
    • पुणे में ९ दिवसीय ६० वीं वर्षगाँठ उत्सव का आयोजन, जिसमें देश भर से ७० कलाकारों की सहभागिता |
  • वर्ष १९६५
    • सर्वप्रथम बाल गंधर्व स्वर्ण पदक पुरस्कार की घोषणा के उपरान्त प्रथम स्वर्ण पदक मास्टरजी को प्रदान किया गया |
  • वर्ष १९६६
    • भारतीय सिनेमा जगत में अविस्मरणीय योगदान के फलस्वरूप प्रभात फिल्म समारोह में फिल्म फोरम की ओर से मान पत्र प्रदान करते हुए सम्मानित |
  • वर्ष १९६९
    • ५ नवम्बर के दिन सांगली में नाट्याचार्य विष्णुदास भावे स्वर्ण पदक से अलंकृत |
  • वर्ष १९७१
    • २६ जनवरी गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में राष्ट्रपति वराहगिरी वेंकट गिरी के हाथों भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण नागरिक सम्मान से नवाजा गया |
  • वर्ष १९७२
    • संगीत नाटक अकादमी की ओर से फेलोशिप ( रत्न सदस्यत्व ) सम्मान प्राप्त |
  • वर्ष १९७४
    • २० अक्टूबर, ललिता पंचमी के दिन सुबह मंगल प्रहर में वृद्धावस्था के चलते निजी निवास स्थान में स्वर्गवास |
  • वर्ष १९७५
    • पुणे के बालगंधर्व रंगमंदिर के अहाते में मास्टरजी के पुतले की स्थापना | ‘गान हीरा’ हीराबाई बरोडेकर के हाथों पुतले का अनावरण | इस अवसर पर हीराबाई और पी. एल. देशपांडे के सार्वजनिक गौरवपरक भाषण |
  • वर्ष १९८३
    • मराठवाड़ा के जालना में नवनिर्मित नाट्यमंदिर में मास्टरजी का पुतला स्थापित कर उस वास्तु को ‘मास्टर कृष्णराव फुलंब्रीकर नाट्यगृह’ नाम दिया गया |

संवाद व संपर्क

अनुसरण किजीए